Tuesday, 8 September 2020

अमरीकी चुनाव: ट्रंप के बाद हिंदू वोटों पर अब बाइडन भी लगा रहे दांव

 29 जनवरी 2019 को जब राज पटेल की नजरें मंदिर पर पड़ीं तो वे दंग रह गए.dubwey

इस मंदिर में तोड़फोड़ की जा चुकी थी. गैलरी की दीवारों पर नफ़रत भरे संदेश लिखे हुए थे. इनमें से कुछ ईसाइयत को बढ़ावा देने वाले संदेश थे.

अमरीका के केंटकी राज्य के लुइविल शहर में मणिनगर

श्री स्वामीनारायण गढ़ी मंदिर के प्रवक्ता पटेल कहते हैं, "मैंने ऐसा कभी नहीं देखा था. मेरी धड़कन एक सेंकेड के लिए रुक सी गई."

अमरीका में ही पैदा हुए और पले-बढ़े राज पटेल कहते हैं कि उनके अंदर डर, गुस्सा और दुख था. उसी साल जुलाई में एक पुजारी को न्यूयॉर्क में बुरी तरह से पीटे जाने की ख़बर आई.

उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. 2016 में एक गाय का कटा हुआ सिर पेनसिल्वेनिया राज्य में एक हिंदू गौ-अभयारण्य में फेंक दिया गया.

अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव होने में दो महीने से भी कम का वक्त बचा है और एक नई मुहिम 'हिंदू अमरीकन्स फॉर बाइडन' में इस तरह के नफ़रत फैलाने वाले मामले या हेट क्राइम्स में सजा देने और पूजास्थलों को सुरक्षा देने की प्रतिबद्धता जताई गई है.

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'हिंदू अमरीकन्स फॉर बाइडन' के मुरली बालाजी कहते हैं, "ऐसा पहली बार हो रहा है जब किसी डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति उम्मीदवार के चुनाव अभियान में इस तरह हिंदू अमरीकियों के लिए खासतौर पर बात की गई है. यह अभूतपूर्व है."

14 अगस्त को "हिंदू वॉयसेज़ फॉर ट्रंप" अभियान शुरू होने के बाद करीब 20 लाख हिंदुओं को लुभाने के लिए बाइडन को अपना अभियान शुरू करना पड़ा है. 'हिंदू अमरीकन्स फॉर बाइडन' अभियान में कहा गया है कि हिंदुओं के खिलाफ हेट क्राइम्स में करीब तीन गुना इज़ाफा हुआ है.

सरकारी आंकड़ों का जिक्र करते हुए इसमें कहा गया है, "2015 में हिंदुओं के खिलाफ पांच अपराध हुए थे, जबकि 2019 में यह संख्या बढ़कर 14 हो गई. 2017 में ये अपराध बढ़कर 15 पर पहुंच गए थे."

अमरीका में भारतीय अमरीकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने उद्घाटन वाले वेबिनार में कहा, "गुज़रे चार साल में हमने घृणा, भेदभाव, असहिष्णुता में इज़ाफा देखा है. यह असहिष्णुता हिंदू अमरीकियों के खिलाफ भी हुई है."

हिंदू वॉयसेज़ फॉर ट्रंप के मुहैया कराए गए आंकड़े के मुताबिक, अमरीका में कुल 662 मंदिर हैं.

डेमोक्रेटिक वोटों में सेंधमारी का डर?

भारतीय अमरीकी ऐतिहासिक रूप से डेमोक्रेट्स को पसंद करते रहे हैं. भारतीय मूल के करीब 45 लाख लोग अमरीका में रहते हैं. 2016 में केवल 16 फीसदी भारतीय अमरीकियों ने ही ट्रंप को वोट दिया था.

डेमोक्रेट भारतीय अमरीकियों के एक तबके को लगता है कि ट्रंप के समर्थकों की संख्या बढ़ सकती है. इसके पीछे कई वजहें गिनाई जा रही हैं.

हालांकि, कश्मीर और एनआरसी जैसे भारत सरकार के उठाए गए कदमों को लेकर ट्रंप प्रशासन मोटे तौर पर चुप ही रहा है, लेकिन बर्नी सैंडर्स और प्रमिला जयपाल जैसे डेमोक्रेट्स ने भारत की कड़ी आलोचना की है.

हाउडी मोदी इवेंट में ट्रंप की मौजूदगी और उनकी भारत की यात्रा से कइ लोगों को लगता है कि बड़े पैमाने पर भारतीय अमरीकी और खासतौर पर कट्टर हिंदू अमरीकी ट्रंप के पाले में चले जाएंगे. कश्मीर, एनआरसी, सीएए जैसे मसलों का जिक्र जो बाइडन के विज़न डॉक्यूमेंट में किया गया है. इसका शीर्षक "जो बाइडन्स एजेंडा फॉर मुस्लिम-अमरीकन कम्युनिटीज़" है.

इसके चलते कुछ लोगों ने मांग उठाई कि ऐसा ही एक पॉलिसी पेपर हिंदू अमरीकियों के लिए भी होना चाहिए. कई लोग ट्रंप को भारत समर्थक के तौर पर मानते हैं. यहां तक कि उदार डेमोक्रेट भी इससे घबराए हुए हैं. इसके चलते बाइडन के भारतीय अमरीकियों के लिए विजन डॉक्यूमेंट, बाइडन और हैरिस का भारत के स्वतंत्रता दिवस और गणेश चतुर्थी के लिए संदेश और 'हिंदू अमरीकन्स फॉर बाइडन' जैसी चीज़ें हुई हैं.

इंडियन अमरीकन्स पर विज़न डॉक्यूमेंट में सीमापार आतंकवाद और चीन से खतरों का भी ज़िक्र किया गया है. बाइडन कैंपेन के मुताबिक, आठ राज्यों में 13.1 लाख अहम भारतीय अमरीकी वोट हैं.

ट्रंप कैंपेन पर प्रतिक्रिया

ऐसे में क्या 'हिंदू अमरीकन्स फॉर बाइडन' मुहिम को खोए वोटों को हासिल करने की प्रतिक्रिया नहीं माना जाना चाहिए? एक डेमोक्रेट भारतीय अमरीकी ने इसे "नुकसान की भरपाई के जैसा" बताया है, लेकिन कहा है कि "छोटे से छोटा काम भी मदद करेगा."

'हिंदू अमरीकन्स फॉर बाइडन' के मुरली बालाजी कहते हैं, "यह कोई प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक समानांतर काम है."

वे याद दिलाते हैं कि "भारतीय पीएम मोदी और पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच एक बेहद नज़दीकी संबंध था."

ट्रंपइमेज कॉपीरइटSAUL LOEB/GETTY IMAGES

मुरली कहते हैं, "ओबामा, बाइडन के प्रशासन में रिकॉर्ड संख्या में हिंदू काम कर रहे थे. मेरा मानना यह है कि ऐसे भारतीय अमरीकी हैं जो टैक्स, रेगुलेशंस जैसे मसलों पर रूढ़िवादी हैं. ये कुछ मसलों को आधार बनाकर ट्रंप को वोट देने की बात कर चुके हैं. दूसरे शब्दों में, इन लोगों को ट्रंप को वोट देने के लिए प्रोत्साहित नहीं करना पड़ा. इनके किसी भी हाल में ट्रंप को ही वोट देने के आसार हैं."

जो बाइडन कई चुनाव सर्वेक्षणों में बढ़त लेते हुए दिखाई दिए हैं, लेकिन ट्रंप अभी भी मज़बूत उम्मीदवार के तौर पर देखे जा रहे हैं. ऐसे में बाइडन के अभियान में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही है.

भारत के अलावा, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, गयाना और ट्रिनिडाड समेत दुनिया के दूसरे देशों के हिंदू भी अमरीका में हैं. इनमें से कई हिंदू अपने मूल देश में प्रताड़ना का शिकार होने से बचने के लिए अमरीका आए हैं.

मुरली कहते हैं, "न तो सभी भारतीय हिंदू हैं और न ही सभी हिंदू भारतीय हैं."

चुनाव अभियान में देरी?

'हिंदू अमरीकन्स फॉर बाइडन' की सदस्य निकी शाह के मुताबिक, करीब एक महीने से इस मुहिम को शुरू करने की तैयारी चल रही थी. लेकिन, चुनावों में 60 दिन से भी कम का वक्त बचे हैं, तो क्या यह मुहिम देरी से शुरू नहीं हुई है?

मुरली कहते हैं, ""कनवेंशन्स के ठीक बाद इसे किया गया है जिससे यह संदेश भी जाता है कि बाइडन के अभियान में किसी भी वोट को हल्के में नहीं लिया गया है. साथ ही हिंदू अमरीकी समुदाय की विविधता को समझने का यह एक आदर्श वक्त है."

इस अभियानन में कमला हैरिस की अपील का भी सहारा लिया गया है.

राज पटेल को लगता है कि कमला हैरिस का चुनाव अमरीका में हिंदुओं को लेकर एक कौतूहल पैदा करेगा.

कांग्रेस सदस्य राजा कृष्णमूर्ति ने एक वेबिनार में कहा, "अपनी मां की तरफ से वे हिंदू हैं.अगर आप उनके परिवार की तस्वीरों पर गौर करें तो आप उन तस्वीरों में खुद को पाएंगे. वे हिंदू अमरीकी समुदाय से अपने संबंधों को बहुत तवज्जो देती हैं."

जिन भारतीय अमरीकियों से मैंने बात की उन्होंने कहा कि यूएस में नस्लवाद एक हकीकत है. लेकिन, अमरीका में हिंदू होने के क्या मायने हैं?

राज कहते हैं कि अमरीका में हिंदू धर्म को ज़्यादा लोग नहीं समझते हैं.

भारतीय मूल की कमला पर बाइडन का दांव

राज पटेल कहते हैं, "बड़े होते वक्त की मुझे अभी भी वे घटनाएं याद हैं जब हमें धमकाए जाने और निशाना बनाए जाने के चलते भागकर घर आना पड़ता था. ऐसे भी मौके आए जब कई बच्चे हमें हिंदू कहते थे, ऐसा इस वजह से नहीं होता था कि हिंदू एक अलग धर्म होता है, बल्कि इसकी वजह भेदभाव और नस्लवाद थी."

राज कहते हैं कि उन्हें अब अपने बच्चों के साथ यह सब होता नहीं दिखता है. इसकी बजाय उन्हें लगता है कि उन्हें एक ब्राउन शख्स होने की वजह से निशाना बनाया जाता है.

पेनसिल्वेनिया में लक्ष्मी काऊ सेंक्चुअरी (गौ-अभयारण्य) चलाने वाले डॉ. शंकर शास्त्री कहते हैं कि उन्हें कभी भी यह नहीं लगा कि उन्हें उनकी आस्था की वजह से टारगेट किया गया है. "लोग सहानुभूति रखते हैं. हम सहिष्णु हैं और आगे बढ़ रहे हैं. चंद लोग इस तरह के कट्टर हो सकते हैं, लेकिन आमतौर पर वे अच्छे लोग हैं."

इसी अभ्यारण में 2016 में गाय का सिर मिला था, लेकिन वे इसे हेट क्राइम मानने से इनकार करते हैं. "वे टीनेजर थे जिन्होंने माफी मांगी और हमने उसे स्वीकार कर लिया. इसी वजह से मैं इसे हेट क्राइम नहीं मानता हूं."

क्या गुजरे कुछ सालों में हिंदुओं के खिलाफ हेट क्राइम बढ़े हैं?

शास्त्री कहते हैं, "लेकिन, ऐसा ओबामा के वक्त हुआ है न कि राष्ट्रपति ट्रंप के दौर में."

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